Uttarakhand Disaster : उत्तराखंड की वह आपदा, जिसने भागीरथी की धारा बदल दी
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उत्तरकाशी के धराली में प्राकृतिक आपदा ने दस्तक दी है। हाल के बरसों में उत्तराखंड (Uttarakhand Disaster) में इस तरह की आपदाएं लगातार आ रही हैं। uplive24.com पर एक्सपर्ट बता रहे हैं इसकी वजह।
डॉ. बृजेश सती
Uttarakhand Disaster : हाल के वर्षों में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में प्राकृतिक आपदाओं (Natural disasters in Uttarakhand and Himachal) की घटनाओं में तेजी से इजाफा हुआ है। विशेष रूप से बादल फटने (cloudburst in Himalayas) की घटनाएं मानसून के दौरान आम हो गई हैं। ये न सिर्फ भारी जन-धन की हानि का कारण बन रही हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन (climate change) और पर्यावरणीय असंतुलन की भी गंभीर चेतावनी दे रही हैं।
मंगलवार को उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में खीरगंगा नदी के ऊपरी क्षेत्र में बादल फटने (Uttarakhand Disaster) के कारण अचानक आई बाढ़ ने तबाही मचा दी। मलबे की तेज़ लहरों ने कई घर, दुकानें और सड़कें बहा दीं। एक तरह से इस आपदा ने धराली गांव का भूगोल और इतिहास दोनों बदल डाले।
दरअसल, पहाड़ों में प्राकृतिक आपदाएं (Uttarakhand Disaster) कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन बीते एक दशक में जिस तरह से इनकी आवृत्ति और तीव्रता बढ़ी है, वह चिंताजनक है। गंगा घाटी में धराली और सुखी टॉप जैसे क्षेत्रों में आए दिन इस तरह की घटनाएं घटित हो रही हैं। यह संकट केवल प्रकृति से नहीं, बल्कि मानवजनित कारणों से भी उपजा है।
विकास के नाम पर हो रहे अनियोजित निर्माण कार्य, विशेषकर नदियों, गाड़-गदेरों के किनारे, पारंपरिक जल मार्गों को अवरुद्ध कर रहे हैं। इससे जब भारी वर्षा होती है, तो पानी और मलबा अपना रास्ता बदलकर बस्तियों की ओर मुड़ जाता है। यही कारण है कि आज पहाड़ों में छोटी-छोटी बारिश भी बड़ी आपदा (Uttarakhand Disaster) का रूप ले लेती है।
वैज्ञानिक लंबे समय से इन खतरों को लेकर चेताते आ रहे हैं, लेकिन उनके सुझावों को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। पर्वतीय क्षेत्र की पारिस्थितिकी बेहद संवेदनशील है और यहां किसी भी तरह का अंधाधुंध निर्माण कार्य बिना वैज्ञानिक आकलन के किया जाना भारी जोखिम पैदा करता है।
उत्तरकाशी की यह घटना एक बार फिर हिमालयी पारिस्थितिकी (Fragile Himalayan ecology) को लेकर सजगता की मांग करती है। अब वक्त आ गया है कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन को प्राथमिकता दी जाए, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों से बचा जा सके।
धराली आपदा (Uttarakhand Disaster) ने दिलाई चमोली त्रासदी की याद, विशेषज्ञ बोले – हमने इतिहास से कुछ नहीं सीखा
धराली में हालिया बादल फटने (Cloudburst in Dharali) और उसके बाद आई जल प्रलय (Flash flood in Uttarkashi) ने एक बार फिर 7 फरवरी 2021 की चमोली त्रासदी की भयावह यादें ताज़ा कर दी हैं। उस समय ज्योतिर्मठ विकासखंड में ग्लेशियल फटने से आए जलसैलाब में 107 लोगों की जान चली गई थी। यह हादसा उसी क्षेत्र में हुआ था, जहां कभी गौरा देवी ने 1970 के दशक में विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन (Chipko Movement) की शुरुआत की थी।
'अवांणा का डांडा' आपदा
गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो. एम.पी.एस. बिष्ट के अनुसार, उत्तरकाशी जिले के हर्षिल से तीन किलोमीटर आगे गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित धराली गांव का भूगोल ही बदल चुका है। भारी वर्षा और मलबे के कारण घाटी की शक्ल पूरी तरह से बदल गई है। यह इलाका इतिहास में भी इस तरह की घटनाओं का गवाह रहा है।
प्रो. बिष्ट बताते हैं कि सन् 1750 और 1800 में भी गंगोत्री घाटी में इसी प्रकार की त्रासदियां (Uttarakhand Disaster) घट चुकी हैं। उन्होंने विशेष रूप से एक घटना का जिक्र किया, जब झाला के पास 'अवांणा का डांडा' से मलबा गिरने से भागीरथी नदी का प्रवाह सुखी गांव के नीचे अवरुद्ध हो गया था। इसके परिणामस्वरूप झाला से जांगला तक लगभग 14 किलोमीटर लंबी झील बन गई थी, जिसमें तीन गांव पूरी तरह समा गए थे। आज जो यह घाटी हमें चौड़ी दिखाई देती है, वह उस ऐतिहासिक त्रासदी का ही परिणाम है।
'दुर्भाग्य यह है कि हमारी आने वाली पीढ़ी ने इन त्रासदियों से कोई सबक नहीं लिया,' प्रो. बिष्ट कहते हैं। उन्होंने दुख व्यक्त किया कि आज पहाड़ों में नालों और गाड़-गदेरों के मुहानों पर बड़े-बड़े होटल, रिसॉर्ट्स और बस्तियां बस चुकी हैं। नतीजा यह है कि जब भी प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाती है, हमें दुःखद समाचारों का सामना करना पड़ता है।
प्रो. बिष्ट ने बताया कि उन्होंने कई बार विभिन्न मंचों पर लोगों को आगाह किया है, लेकिन विकास की अंधी दौड़ में इन चेतावनियों को लगातार अनसुना किया गया। स्थानीय लोगों के अनुसार, पिछले डेढ़ दशक में धराली क्षेत्र के नाले कई बार अपने विकराल रूप में सामने आ चुके हैं, लेकिन प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
पिछले 25 वर्षों में उत्तराखंड में कई बार बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। इनमें जान-माल की भारी क्षति हुई।
- 2002 में उत्तरकाशी जिले में कई गांवों में भारी नुकसान हुआ, दर्जनों लोगों की मौत हुई।
- 2010 में पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में बादल फटा, दर्जनों मकान बहे, 35 की मौत हुई।
- 2012 में उत्तरकाशी में बादल फटने से आई तबाही से 30 मौतें, कई गांव तबाह।
- 2013 में केदारनाथ में सबसे भीषण आपदा आई, बादल फटा, चोराबाड़ी ग्लेशियर टूटने से मंदाकिनी नदी में बाढ़ आ गई। इसमें केदार पुरी को भारी नुकसान हुआ। हजारों लोगों की मौत।
- 2016 में सीमांत जिलों चमोली और पिथौरागढ़ में अति वृष्टि से कुछ मकान ध्वस्त हुए, 15 लोगों की मौत हुई।
- 7 फरवरी 2021 को ज्योर्तिमठ विकासखंड के रैणी गांव में ग्लेशियर टूटने से धौली गंगा में बाढ़ आई। इसके चलते 107 लोगों की मौत हुई।
- 2023 में रुद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर में 10 लोगों की मौत हुई।
बादल फटना एक प्राकृतिक आपदा है, लेकिन समय रहते सचेत होकर इसके दुष्प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। विशेष रूप से उत्तराखंड और हिमाचल जैसे संवेदनशील पर्वतीय राज्यों में विकास कार्यों को वहाँ की स्थानिक भौगोलिक परिस्थितियों और पारिस्थितिकी तंत्र के अनुरूप ही किया जाना चाहिए।
आज जिस प्रकार नदियों, गाड़-गदेरों और नालों के निकट अनियोजित और अवैज्ञानिक तरीके से निर्माण हो रहे हैं, वे आने वाली आपदाओं को निमंत्रण दे रहे हैं। इन निर्माणों पर रोक लगाना नितांत आवश्यक है। सरकार को चाहिए कि ऐसे अतिक्रमण और निर्माण कार्यों की सुनियोजित पहचान करे और कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करे, ताकि भविष्य में ऐसी आपदाओं (Uttarakhand Disaster) से जन-धन की हानि रोकी जा सके।
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